भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था, जिसे विश्व के बाजार में अपनी ताकत के लिए जाना जाता है, अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना कर रही है। नवंबर 2024 में जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर 5.4% पर आ गई है। यह गिरावट पिछले वर्षों की तुलना में एक उल्लेखनीय मंदी को दर्शाती है। यह सिर्फ सात तिमाहियों में सबसे धीमी वृद्धि दर नहीं है, बल्कि देश की भविष्य की आर्थिक स्थिति को लेकर गहरी चिंताओं का विषय बन गया है।
विकास दर में इस गिरावट का प्रमुख कारण उपभोग में कमी और विनिर्माण एवं खनन क्षेत्रों का कमजोर प्रदर्शन है। उपभोक्ता खर्च, जो कि देश के आर्थिक संरचना का एक बड़ा हिस्सा है, में आई गिरावट का सीधा असर GDP पर पड़ा है। लोग, जो तीन साल पहले की तुलना में अब कम खर्च कर रहे हैं, अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में सुस्ती ला रहे हैं। विनिर्माण और खनन उद्योग, जो कि आर्थिक विकास के स्थरीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहे हैं। यह फिसलते आर्थिक निर्देशांक केवल उपभोक्ता और उत्पादन समस्याओं तक सीमित नहीं हैं।
ऐसे समय में, जब देश की आर्थिक वृद्धि की गति में रुकावट की उम्मीद नहीं थी, नीति निर्माताओं पर दबाव है कि वे इस रुझान को रोकें और आर्थिक पुनरुद्धार के उपाय तलाशें। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए नीतिगत हस्तक्षेप की तीव्रता और प्रभावी कार्यान्वयन परम आवश्यक है। बुनियादी ढांचे में निवेश, रोजगार अवसरों में वृद्धि और लघु उद्योगों को समर्थन देने जैसी उपायों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की गति को पुनर्जीवित करना होगा।
सरकार द्वारा उक्त नीतिगत परिवर्तनों की आवश्यकता को समझते हुए, विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की घोषणा करनी चाहिए जो आर्थिक सुधार को गति प्रदान करें। इसमें वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज, उद्योगों के लिए रियायती दरों पर ऋण और कृषि क्षेत्र में तकनीकी प्रगति जैसी योजनाओं का समन्वय शामिल है। इसके अतिरिक्त, निर्यात को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीति सुधार की आवश्यकता पर भी ध्यान देना होगा।
भारत की जीडीपी की धीमी प्रगति न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंता का विषय है। भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, लेकिन हाल ही में आई इस गिरावट ने विशेषकर एशियाई बाजार में चिंता पैदा कर दी है। वैश्विक निवेशक, जो भारत को एक सुरक्षित और लाभकारी निवेश स्थल के रूप में देखते थे, अब अधिक सतर्क हो गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक के विशेषज्ञ भी भारत की आर्थिक स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं, जो मानते हैं कि आर्थिक नीति में आवश्यक सुधार किए बगैर, इसे केवल घरेलू चिंता मानकर छोड़ना उचित नहीं होगा। वैश्विक व्यापार संबंधों पर दूरगामी प्रभाव छोड़ने से बचे रहने के लिए, अन्य देशों के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने की भी आवश्यकता होगी।
यह गिरावट संकेत देती है कि केवल स्थानीय नीति सुधार पर्याप्त नहीं होंगे। भारतीय बाजार में निवेश आकर्षित करने के लिए रोजगार के नए अवसरों का सृजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेषकर युवा वर्ग के लिए प्रोद्योगिकी आधारित नौकरियों और उन्नत कौशल विकास कार्यक्रमों की संख्या को बढ़ाना समय की मांग है।
इस संदर्भ में, स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ-साथ, विधायकों को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो नए उद्यमियों को समर्थन दें। टैक्स रीयालितियों में छूट, निवेश अनुकूलताएँ और विदेश निवेशकों के लिए विश्वसनीयता स्थापित करना अनिवार्य है।
भारत की मंथर आर्थिक वृद्धि चिंता का विषय है, परंतु यह समय तेजी से अवसरों को पहचानने और नए सिरे से प्रयास शुरू करने का भी है। सरकार और नीति निर्माताओं के लिए यह अनुकूल समय है कि वे ऐसी नीतियां लागू करें जो दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और प्रगति की दिशा में लीड करें।
आर्थिक सुधार और विकास के लिए मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, जो केवल स्थानीय स्तर पर नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की आर्थिक प्रतिष्ठा को पुनः स्थिर करेगी। देश के आगामी आर्थिक मार्ग को नियोजित करने के लिए नीतिगत दिशा में ठोस कदम उठाना समय की मांग है।