जिस प्रकार इतिहास में कुछ व्यक्ति अपने कार्यों के माध्यम से अमर हो जाते हैं, उसी प्रकार न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यादगार बन गया है। उन्होंने नवंबर 2022 से नवंबर 2024 तक बतौर मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहकर कई महत्वपूर्ण बदलावों को अंजाम दिया। उनके कार्यकाल को मुख्यतः व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर केंद्रित किया गया था, जिसमें उन्होंने जमानत मामलों को प्राथमिकता दी और पुराने लंबित मामले के समाधान के लिए कदम उठाए।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों को लेकर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जमानत मामलों को प्राथमिकता दी। उनके कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ने 21,358 जमानत मामलों का समाधान किया। यह आंकड़ा दर्शाता है कि जितने मामले दर्ज किए गए थे, उनमें से लगभग सभी का निपटारा हो सका। इससे यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बहाल करने में उनकी मजबूत इच्छाशक्ति थी। इन पहलुओं ने उनकी न्यायिक दृष्टिकोण को व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षक के रूप में पेश किया।
आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए भी चंद्रचूड़ का कार्यकाल उल्लेखनीय रहा है। उन्होंने विशेष रूप से मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों पर ध्यान केंद्रित किया। पीएमएलए के तहत दर्ज 961 मामलों में से 907 का समाधान किया गया। यह उपलब्धि इस बात को दर्शाती है कि न्यायपालिका आर्थिक अपराधों से संघर्ष करने के लिए कितनी प्रतिबद्ध है। ऐसे मामलों में तेजी से निर्णय लेने का अर्थ यह है कि अपराधी जल्द कानूनी कार्रवाई का सामना करेंगे और आर्थिक प्रणाली को सुरक्षित बनाएंगे।
लंबे समय से लंबित मामलों के निपटारे के लिए चंद्रचूड़ ने एक रणनीतिक योजना बनाई। उन्होंने सुनिश्चित किया कि पुराने मामलों को प्रतिदिन सूचीबद्ध किया जाए ताकि अदालत की फाइलों का सफाया किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप, संविधान से जुड़े 33 महत्वपूर्ण मामलों का निपटारा हुआ। इस प्रकार की योजनाओं के माध्यम से ही न्यायपालिका में लंबितता की समस्या का समाधान संभव है।
डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल में संविधान से जुड़े मामलों के समाधान के लिए कई संवैधानिक बेंचों की स्थापना की। 2023 में 17 और 2024 में 20 संवैधानिक बेंचों की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य संवैधानिक मामलों का शीघ्र निपटारा करना था। ऐसी बेंचों के माध्यम से न्यायपालिका ने अपने काम के प्रति गंभीरता दिखाई और नागरिकों के हितों की रक्षा की।
अपने कार्यकाल के अंत तक, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में 82,000 मामलों की लंबितता के मुद्दे को सामने रखा। उन्होंने बताया कि पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाते हुए पुराने अनरजिस्टर्ड या दोषपूर्ण मामलों को आधिकारिक गिनती में शामिल करने से लंबितता के आंकड़े बढ़ गए हैं। उनकी पहल के कारण ही न्यायपालिका में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस प्रयास देखने को मिला।
चंद्रचूड़ का यह कार्यकाल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्र करने, आर्थिक अपराधों का समाधान करने और न्यायपालिका की पारदर्शिता में सुधार लाने के लिए विशेष रूप से जाना जाएगा। उनके निर्देशित कदमों की वजह से ही भारतीय न्यायिक प्रणाली ने अपनी बुनियादी सुविधाओं में सुधार किया और एक नई दिशा की ओर अग्रसर हुई।