सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाई कोर्ट के विवादास्पद आदेश को रद्द किया: किशोरियों को यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने का कहा था

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सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाई कोर्ट के विवादास्पद आदेश को रद्द किया: किशोरियों को यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने का कहा था

सुप्रीम कोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोलकाता हाई कोर्ट के उस विवादास्पद आदेश को रद्द कर दिया जिसमें किशोरियों को 'यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने' की सलाह दी गई थी। यह आदेश 18 अक्टूबर 2023 को दिया गया था और अदालत द्वारा इसे वापस लिया गया। यह प्रकरण 'In Re: Right to Privacy of Adolescents' शीर्षक से स्वतः संज्ञान लेकर लिया गया था।

कोर्ट में था विवादास्पद बयान

कोलकाता हाई कोर्ट की बेंच ने पिछले साल के आदेश में कहा था की किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित करना चाहिए। इस बयान ने अदालत की आलोचना के केंद्र में ला दिया। अदालत ने 25 वर्षीय पुरुष के यौन गतिविधियों में शामिल होने के आरोप को खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान ने इस आदेश को रद्द कर दिया। जस्टिस ओका ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में सही दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की दोषसिद्धि को पुनः बहाल कर दिया और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6, आईपीसी की धारा 376(3) और धारा 376(2)(एन) के तहत उसकी मजबूती को बहाल कर दिया।

विशेषज्ञ पैनल का गठन

शीर्ष अदालत ने पीड़िता की सहायता के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया है, जो उसे सही निर्णय लेने में मदद करेगा। यह पैनल पीड़िता को सशक्त बनाने और उसके अधिकारों को संरक्षित रखने का काम करेगा।

कोलकाता हाई कोर्ट का आदेश और उसकी आलोचना

कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित करना चाहिए क्योंकि समाज की नज़र में वे हारी हुई मानी जाती हैं। इस बयान ने व्यापक विवाद उत्पन्न किया और समाज में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं।

सुप्रीम कोर्ट ने दी नई दिशा

सुप्रीम कोर्ट ने फैसल किया कि ऐसे मामलों में न्यायिक प्रणाली को संवेदनशीलता और समझदारी के साथ काम करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि यौन ईच्छाओं पर नियंत्रण के बजाय, समाज को शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाना चाहिए।

किशोरावस्था में यौन इच्छाएं

युवाओं के यौन संबंधी विचार और इच्छाओं को लेकर समाज में पहले से ही कई विवाद और मतभेद रहे हैं। किशोरावस्था में यौन इच्छाओं का होना सामान्य माना जाता है, लेकिन इस पर नियन्त्रण को लेकर उच्च न्यायालय का आदेश समाज की नैतिकता के खिलाफ माना गया है।

न्यायपालिक की जिम्मेदारी

न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह समाज को सही दिशा-निर्देश दे और संवेदनशील मामलों में सही न्याय करे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह सिद्ध किया है कि यौन सम्बंधों के मामलों में कानूनी धरातल पर सटीक निर्णयों की आवश्यकता है।

समाज की भूमिका

समाज की भूमिका

समाज को किशोरों की यौन शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान देने की ज़रूरत है, ताकि यौन इच्छाओं को सही दिशा मिल सके। परिवार और शैक्षिक संस्थानों को बच्चों को स्वस्थ और सुरक्षित यौन शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।

सामाजिक जागरूकता की दिशा में प्रयास

समाज में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न अभियानों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। यह महत्वपूर्ण है कि किशोर अपनी यौन इच्छाओं को सही तरीके से समझें और उन्हें संतुलित तरीके से व्यक्त करें।

अंतिम शब्द

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि समाज के नैतिक मानदंडों के लिए भी एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगा। हमें समाज को ऐसा बनाना चाहिए जहां किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न न हो और हर व्यक्ति के अधिकारों का सम्मान हो।

6 टिप्पणि

ANIL KUMAR THOTA

ANIL KUMAR THOTA

22 अगस्त, 2024 - 20:26 अपराह्न

ये कोर्ट का फैसला सही है किशोरियों को नियंत्रित करने की बजाय समझना चाहिए
हर इंसान की इच्छाएं नैतिक होती हैं बस उनका अभ्यास गलत होता है

Aila Bandagi

Aila Bandagi

23 अगस्त, 2024 - 23:42 अपराह्न

अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया वरना ये बातें बच्चों को डरा देती थीं

VIJAY KUMAR

VIJAY KUMAR

24 अगस्त, 2024 - 07:54 पूर्वाह्न

ये सब बहाना है भाई साहब 😏
क्या तुम्हें लगता है कि जब तक आम आदमी के घर में बच्चे को यौन शिक्षा नहीं दी जाती तब तक कोर्ट का फैसला क्या फायदा?
पूरा सिस्टम बर्बाद है और अब ये न्यायाधीश अपनी शान बढ़ाने के लिए ट्वीट कर रहे हैं
मैंने देखा है कि जहां लड़कियां बाहर निकलती हैं वहां पुलिस भी बैठी होती है
क्या ये सब न्याय है या सिर्फ ट्रेंडिंग?
कोई भी बच्चा अगर यौन इच्छा रखता है तो उसे गिरफ्तार कर लेंगे ना?
क्या ये सुप्रीम कोर्ट का नया बिजनेस मॉडल है?
जब तक परिवार और स्कूल अपना काम नहीं करेंगे तब तक ये सब बकवास है
मैं अपने बेटे को बताता हूं कि अगर तुम्हारी इच्छा किसी को नुकसान पहुंचाएगी तो वो गलत है
लेकिन इच्छा को दोष नहीं देना चाहिए
ये न्याय का खेल है न कि समाज का बदलाव
इस बार तो ट्विटर पर ट्रेंड हो गया अब देखते हैं कि कितने लोग इसे शेयर करेंगे
मैं तो बस इंतज़ार कर रहा हूं कि कोई फिल्म बन जाए जिसमें एक लड़की को यौन इच्छाओं के लिए जेल भेज दिया जाए
😂

Rajendra Mahajan

Rajendra Mahajan

25 अगस्त, 2024 - 12:17 अपराह्न

इस फैसले को देखकर लगता है कि न्यायपालिका अब सचमुच समझदार हो रही है
पहले तो हम सोचते थे कि किशोरियों को अपनी इच्छाओं को दबाना होगा
लेकिन अब ये समझ आ रहा है कि इच्छाएं नैतिक नहीं होतीं बल्कि उनका व्यवहार होता है
हमारे समाज में यौन शिक्षा का अभाव है
बच्चे गूगल पर देखकर सीखते हैं और फिर उन्हें दोषी ठहराया जाता है
क्या ये न्याय है?
ये फैसला सिर्फ एक लड़की के लिए नहीं है बल्कि हर उस युवा के लिए है जिसकी इच्छाएं अभी तक अपराध मानी जाती थीं
हमें अपनी नैतिकता को बदलना होगा
अगर हम यौन इच्छाओं को अपराध कहते रहेंगे तो वो बस अंधेरे में चलती रहेंगी
समाज को इसे स्वाभाविक बनाना होगा न कि डराना
ये फैसला एक नई शुरुआत है
लेकिन इसे बनाए रखने के लिए हमें स्कूलों में यौन शिक्षा लानी होगी
और शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण देना होगा
अगर हम इसे अनदेखा कर देंगे तो ये फैसला भी केवल एक ट्वीट बन जाएगा
हमें अपनी आँखें खोलनी होंगी
न्याय तभी सच्चा होता है जब वो जीवन को बदल दे

LOKESH GURUNG

LOKESH GURUNG

26 अगस्त, 2024 - 19:11 अपराह्न

अरे भाई ये फैसला तो बहुत बढ़िया हुआ 😍
अब तो हर लड़की अपनी इच्छाओं को जी सकती है
मैंने तो अपनी बहन को भी बताया कि तू जो भी चाहे कर सकती है
लेकिन अगर कोई तुझे बलात्कार करे तो तुरंत पुलिस को बुला
ये सब बकवास कि यौन इच्छाएं गलत हैं वो बंद हो गई
अब तो देखो ये जज लोग बहुत अच्छे हैं
इनके लिए तो एक बहुत बड़ा लव बॉक्स भेजना चाहिए 💌
अब तो हर बच्चा बोलेगा मैं चाहता हूं मैं चाहती हूं
और अब कोई उन्हें रोक नहीं पाएगा
सच में ये न्याय का नया युग है
हमें इसे जश्न मनाना चाहिए 🎉

Manohar Chakradhar

Manohar Chakradhar

27 अगस्त, 2024 - 07:30 पूर्वाह्न

इस फैसले को देखकर लग रहा है कि अदालतें अब बच्चों के साथ इंसानियत से व्यवहार कर रही हैं
पहले तो हम सब इसे एक नैतिक मुद्दा समझते थे
लेकिन अब पता चला कि ये एक मानवीय अधिकार का मुद्दा है
हर युवा की इच्छाएं सामान्य हैं
लेकिन हमने उन्हें दोषी ठहराया
हमने उन्हें डराया
हमने उनकी आवाज़ दबाई
अब जब इस फैसले ने उनकी आवाज़ उठाई है
तो हमें इसे स्वीकार करना होगा
समाज को बदलना होगा
शिक्षा को बदलना होगा
और हमें खुद को बदलना होगा
ये फैसला सिर्फ एक केस नहीं है
ये एक नए समाज की शुरुआत है
जहां लड़कियां डरेंगी नहीं
जहां लड़के शर्माएंगे नहीं
जहां यौन इच्छाएं अपराध नहीं होंगी
बल्कि एक जीवन का हिस्सा होंगी
मैं इसे बहुत बड़ा कदम मानता हूं
और इसे आगे बढ़ाने के लिए हम सबको जुड़ना होगा

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