गोपलगंज में साइबर धोखाधड़ी: फर्जी OSD मैसेज से पुलिस पद भर्ती में दखल

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गोपलगंज में साइबर धोखाधड़ी: फर्जी OSD मैसेज से पुलिस पद भर्ती में दखल

जब अवधेश दीक्षित, सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ पुलिस बिहार पुलिस ने 12 अगस्त 2024 को शाम ७ बजे एक संदिग्ध व्हाट्सऐप संदेश प्राप्त किया, तो मामला तुरंत उजागर हो गया। संदेश में दावा किया गया था कि वह डॉ. गोपाल सिंह, ऑफ़िसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (OSD) मुख्यमंत्री कार्यालय, बिहार से आया है और एक सब‑इंस्पेक्टर को स्टेशन हाउस अफ़सर (SHO) की पदोन्नति की सिफ़ारिश कर रहा है। यह फ़ोन कॉल और व्हाट्सऐप संदेश दोनों ही साइबर धोखाधड़ी के स्पष्ट संकेत थे, जिसके बाद तुरंत साइबर पुलिस स्टेशन को सूचित किया गया।

घटना का परिचय

गोपलगंज, बिहार – वह छोटा‑सा जिल्हा जहाँ से अक्सर राजनीति‑संबंधी शोर सुनाई देता है, अब एक नई डिजिटल चुनौती का सामना कर रहा है। अवधेश दीक्षित की रिपोर्ट में बताया गया कि संदेशों में उप‑इंस्पेक्टर रजत कुमार (नाम बदला गया) को SHO बनाकर पदस्थापित करने की बात की गई थी। यह सब कुछ फ़िरोज़ाबाद के पास के एक कॉफ़ी शॉप में, अधिकारी के मोबाइल पर आया, जहाँ से बात सुनते‑सुनते उन्होंने इस बात को झूठी पहचान समझ लिया।

संदेशों को पढ़ते‑समय “डॉ. गोपाल सिंह” की प्रोफ़ाइल फ़ोटो और हस्ताक्षर भी संलग्न था, जिससे यह विश्वास दिलाने की कोशिश की गई थी कि यह वास्तव में मुख्यमंत्री कार्यालय से आया एक आधिकारिक आदेश है। लेकिन कुशल अधिकारियों ने तुरंत संदेह जताया और आगे की जाँच की पहल की।

तकनीकी जाँच और मुख्य निष्कर्ष

साइबर अपराधों पर विशेष प्रभारी अवन्तिका कुमार, डिप्टी सुपरिंटेंडेंट (DSP) गोपलगंज साइबर पुलिस स्टेशन ने तुरंत एक तकनीकी जाँच शुरू की। डाटा फॉरेंसिक टीम ने व्हाट्सऐप बैक‑अप, कॉल रिकॉर्ड और मेटाडेटा को डिकोड किया।

  • संदेशों का IP पता 103.45.212.87 पर स्थित एक सार्वजनिक Wi‑Fi नेटवर्क से आया था, जो शहर के मुख्य बाजार के पास स्थित था।
  • फ़ोन कॉल का ट्रेसिंग क्रमिक रूप से दो अलग‑अलग मोबाइल नंबरों को दर्शाता था, जो एक SIM‑सिंजेज़र द्वारा स्विच किए गए थे।
  • संदेशों में प्रयुक्त प्रोफ़ाइल फोटो की उलट‑पलट जांच से पता चला कि यह 2022 में एक स्थानीय पत्रकार के सोशल‑मीडिया अकाउंट से ली गई थी।

इन तकनीकी तथ्यों ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह अकेले किसी व्यक्ति की भूल नहीं, बल्कि एक संगठित समूह की योजना है। जाँच टीम ने आगे बताया कि समूह के सदस्य विभिन्न राज्यों में फैले हो सकते हैं और उनका मुख्य लक्ष्य सरकारी पोसिशनिंग के माध्यम से आर्थिक लाभ उठाना है।

पुलिस विभाग की प्रतिक्रिया

सुपरिंटेंडेंट अवधेश दीक्षित ने मीडिया को कहा, “ऐसी नकली लॉबिंग किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं होगी। जो भी इस कड़ी में शामिल पाएगा, उसे कड़ी सज़ा मिलेगी।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि FIR दर्ज कर दंड संहिता की धारा 419 (धोखे से पहचान बनाना), धारा 420 (धोखाधड़ी), और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की संबंधित धारा के तहत दायर की गई है।

जांच में यह भी शामिल है कि जिस सब‑इंस्पेक्टर का नाम विशेष रूप से उल्लेखित था, वह इस घोटाले में शामिल था या नहीं। इस संदर्भ में पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए बुलाया है।

साइबर अपराधी समूह की संभावित संरचना

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की फर्जी लिफ़ाफ़ा बनाकर सरकारी पदोन्नति में दखल देना आसान नहीं है। “इन्हें न केवल तकनीकी ज्ञान है, बल्कि सरकारी प्रक्रियाओं की भी गहरी समझ है,” प्रोफ़ेसर रमेश सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय, कानून संकाय ने कहा। उन्होंने बताया कि असली OSD के ई‑मेल आईडी, डिजिटल सिग्नेचर या आधिकारिक हेडर को दोहराना 2020‑2022 के एक बड़े साइबर फंडरेज़िंग केस से जुड़ा हो सकता है।

इस समूह की पहचान अभी तक स्पष्ट नहीं है, पर प्रारम्भिक रिपोर्ट्स में यह संकेत है कि वे “बेरोज़गार युवा” और “छिपे हुए तकनीकी विशेषज्ञ” का मिश्रण हो सकता है, जो सरकारी नौकरी के टेंडर को दुरुपयोग करके अपने लिए आर्थिक लाभ बनाते हैं।

भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के कदम

भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के कदम

बिहार पुलिस ने घोषणा की कि अब सभी पदोन्नति और ट्रांसफर संबंधी अनुरोधों को आधिकारिक ई‑मेल या प्रमाणित सरकारी पोर्टल के माध्यम से ही मान्य किया जाएगा। साथ ही, साइबर पुलिस स्टेशन ने वैध OSD और अन्य सरकारी आधिकारिक व्यक्तियों के संपर्क विवरणों की सार्वजनिक सूची तैयार करने का प्रस्ताव रखा है, जिससे कर्ज़गार या थर्ड‑पार्टी फ़ोन कॉलों को तुरंत पहचाना जा सके।

राज्य सरकार ने भी एक नई “डिजिटल पहचान सत्यापन मोड्यूल” की घोषणा की है, जिसमें व्हाट्सऐप, ई‑मेल और एसएमएस के माध्यम से भेजे जाने वाले सभी आधिकारिक संदेशों को दो‑स्तरीय प्रमाणीकरण (OTP + डिजिटल सिग्नेचर) के तहत लाना अनिवार्य होगा। यह कदम विशेष रूप से “फर्जी OSD मैसेज” जैसी घटनाओं को रोकने में मदद करेगा।

क्या हो सकता है आगे?

जांच अभी जारी है, लेकिन पुलिस ने संकेत दिया है कि अगले दो हफ्तों में वे मुख्य संदिग्धों को गिरफ्तार करने की संभावना रखते हैं। अगर यह समूह वास्तव में राष्ट्रीय स्तर पर काम करता है, तो इस केस का परिणाम न केवल गोपालगंज बल्कि पूरे बिहार के साइबर सुरक्षा ढाँचे को बदल सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

यह धोखाधड़ी किस प्रकार की थी?

यह एक फ़र्जी OSD‑ड्राईव किया संदेश था, जिसमें मुख्‍य मंत्री के कार्यालय के अधिकारी होने का नाटक कर पुलिस पदोन्नति की सिफ़ारिश की गई। तकनीकी जाँच से पता चला कि संदेशों की उत्पत्ति सार्वजनिक वाई‑फ़ाई नेटवर्क से हुई थी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह साइबर अपराधियों का संगठित प्रयास था।

कौन‑से अधिकारियों ने जांच का नेतृत्व किया?

जांच का नेतृत्व अवन्तिका कुमार, DSP, गोपालगंज साइबर पुलिस स्टेशन की प्रमुख ने किया। साथ ही सुपरिंटेंडेंट अवधेश दीक्षित ने रणनीतिक दिशा निर्धारित की और FIR दर्ज करवाई।

क्या इस योजना में कोई पुलिस अफसर भी शामिल था?

पुलिस ने अभी तक पुष्टि नहीं की है, पर जाँच में यह भी शामिल है कि जिस सब‑इंस्पेक्टर का नाम संदेश में आया था, वह इस झंझट में संलिप्त था या नहीं। वर्तमान में वह अधिकारी पूछताछ के अधीन है।

ऐसे साइबर घोटालों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

राज्य सरकार ने दो‑स्तरीय प्रमाणीकरण और आधिकारिक संचार के लिए डिजिटल सिग्नेचर उपाय जारी किए हैं। साथ ही पुलिस ने सभी पदोन्नति अनुरोधों को आधिकारिक ई‑मेल और पोर्टल के माध्यम से मान्य करने की नई नीति अपनाई है।

भविष्य में इसी तरह के मामलों से जनता को कैसे बचाया जा सकता है?

साइबर सजगता बढ़ाने के लिए वार्षिक प्रशिक्षण, सरकारी अधिकारी की डिजिटल पहचान का सार्वजनिक डेटाबेस और प्रकाशन, तथा नागरिकों को आधिकारिक संचार के फ़ॉर्मेट की जानकारी देना मुख्य उपाय हैं। ये कदम धोखेबाज़ी को पहचानने और रिपोर्ट करने में मदद करेंगे।

1 टिप्पणि

Atish Gupta

Atish Gupta

7 अक्तूबर, 2025 - 04:12 पूर्वाह्न

वास्तव में यह केस साइबर फंडामेंटल्स की किलकिल है, जहाँ हैकर्स ने ओएसडी की वैध छवि को एक शोषण यंत्र में बदल दिया। डाटा फॉरेंसिक का उपयोग करके उन्होंने नेटवर्क ट्रैफ़िक को पुनः कॉन्फ़िगर किया, जिससे ट्रेसिंग जटिल हो गई। इस प्रकार की एडवांस्ड किलर स्ट्रैटेजी को देखते हुए, पुलिस को तकनीकी प्रशिक्षण में भारी निवेश करना चाहिए। न केवल वैध पोर्टल्स, बल्कि सार्वजनिक वाई‑फ़ाई हब्स की सुरक्षा भी अत्यावश्यक है। सरकार को इस मिश्रित परिदृश्य को समझना होगा और सख्त नीतियाँ बनानी होंगी।

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