मंगलवार का दिन भारतीय संसद के लोकसभा में तब विवादों से भर गया जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर के बीच 'जाति' टिप्पणी पर तीखा वाद-विवाद हुआ। बहस की शुरुआत तब हुई जब ठाकुर ने राहुल गांधी पर परोक्ष तंज कसते हुए कहा, 'जिनकी जाति का पता नहीं, वे जाति जनगणना की बात करते हैं।' यह टिप्पणी जैसे ही हुई, राहुल गांधी ने इसका जोरदार तरीके से जवाब देने में देर नहीं की।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि ठाकुर की इस टिप्पणी का उद्देश्य उनको अपमानित करना और उनकी जातिगत पहचान पर सवाल उठाना था। हालाँकि, राहुल ने जोर देते हुए कहा कि वे माफी की माँग नहीं करेंगे। उन्होंने खुले तौर पर कहा कि वे इस प्रकार के आरोपों और अपमानों को खुशी-खुशी सहन करेंगे क्योंकि यह उनके लिए महत्वहीन हैं।
राहुल गांधी ने इस दौरान यह भी स्पष्ट किया कि अगर उनका गठबंधन, आईएनडीआईए सत्ता में आता है, तो वे एक राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना का आयोजन अवश्य करेंगे। उन्हीं की भाषण में उन्होंने आदिवासियों, दलितों और पिछड़े वर्गों के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया और कहा कि जो कोई भी इन मुद्दों को उठाता है, उनको अपमानित और प्रताड़ित किया जाता है। राहुल ने ठाकुर को स्पष्ट रूप से कहा कि वे इस अपमान को भी सहन करेंगे और इससे डरते नहीं हैं।
यह सारी बवाल तब शुरू हुआ जब राहुल गांधी ने संसद में बजट 2024-25 पर बहस के दौरान हिस्सा लिया। राहुल गांधी ने अपने भाषण में विश्वास पूर्वक कहा कि आईएनडीआईए गठबंधन सत्ता में आने पर पक्का करेगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दी जाए और साथ ही राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना भी करवाई जाए।
इससे भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने तुरंत हामी भरते हुए अतीत की घटनाओं का हवाला देकर कहा कि कैसे एक पूर्व प्रधानमंत्री ने खुद ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था। उन्होंने राहुल गांधी की बातों को चैलेंज करते हुए कहा कि यह बातें सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने के लिए की जा रही हैं। अनुराग ठाकुर ने अपने विचारों को बेहद तीखा और स्पष्ट तरीके से रखा और राहुल गांधी को ये बताने की कोशिश की कि उनकी बातें सच्चाई से परे हैं।
राहुल गांधी का त्वरित जवाब देश के राजनीतिक माहौल में पहले से ही चल रहे तनाव को और बढ़ा देता है। उन्होंने आश्वस्त किया कि वे ठाकुर की टिप्पणियों को अपने ऊपर एक व्यक्तिगत हमले के रूप में नहीं देखते हैं बल्कि इसे एक प्रकार का राजनीतिक शस्त्र मानते हैं। उनके अनुसार, यह बीजेपी के द्वारा एक असम्वेदनशील प्रयास था जिससे वे आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों के मुद्दे को दबाना चाहते थे।
राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि वे इस तरह की अभद्र और अनादरपूर्ण टिप्पणियों से पीछे हटने वाले नहीं हैं। उन्होंने सत्ता में आने के बाद एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए जाति जनगणना करने का वादा दोहराया और कहा कि यह जनगणना उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो सदियों से जातीय भेदभाव झेल रहे हैं।
थोड़े समय में ही, यह मुद्दा सिर्फ संसद तक नहीं रहा, मीडिया और सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। लोग इस विषय पर अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे थे, कुछ राहुल का समर्थन कर रहे थे और कुछ ठाकुर की बातों से सहमत थे। इस प्रकार के मुद्दे हमेशा भारतीय राजनीति में ज्वलंत रहते हैं और इस बार भी इससे अलग नहीं था।
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जातिगत विभाजन हमेशा ही एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। राजनीतिक दल अक्सर जातिगत राजनीति का सहारा लेते हैं और इसी संदर्भ में यह विवाद समझा जा सकता है। राहुल गांधी का जाति जनगणना की बात करना और ठाकुर का चेतना भी इसके ही उदाहरण हैं।
अनुराग ठाकुर ने भी इसी मौक़े पर अपने विचार प्रकट किए जिन्होंने यह बताया कि जाति जनगणना का और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सिर्फ वोट बैंक की राजनीति तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उनकी बातों ने सत्ता में बैठे और विपक्ष में बैठे दोनों दलों के नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।