जब बैंक से पैसे उधार लेते हैं या बचत खाते में पैसा डालते हैं, तो हमें दो चीज़ें सुनने को मिलती हैं – ब्याज दर और सूद दर. ये शब्द अक्सर एक जैसा लगता है, पर असल में उनका मतलब थोड़ा अलग हो सकता है. सरल शब्दों में कहें तो ब्याज दर वह प्रतिशत है जो आपको उधार लिए पैसे या जमा किए पैसे पर मिलता या देना पड़ता है.
भारत में इस रेट को तय करने की मुख्य भूमिका रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की होती है. RBI जब रेपो रेट बदलती है, तो बैंकों के लोन और जमा दोनों पर असर पड़ता है. इसलिए ब्याज दर सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि आपकी जेब में सीधे जुड़ी हुई चीज़ है.
2024 की पहली छमाही में RBI ने दो‑तीन बार रेपो रेट को 6.5% से 7% तक बढ़ाया. इसका कारण महंगाई को काबू में रखना था. इस बदलाव का असर तुरंत दिखा: होम लोन पर औसत दर 8.75% से 9.25% के बीच रही, जबकि फिक्स्ड डिपॉज़िट पर रिटर्न 6.5%‑7% तक गिर गया.
अगर आप पर्सनल लोन या ऑटो लोन लेने की सोच रहे हैं तो नई दरें 10‑12% के आसपास हो सकती हैं. वहीं, छोटे बचत खाते में अब 3‑4% का ही रिटर्न मिल रहा है, जो पिछले साल की तुलना में थोड़ा घटा.
कुछ बैंक विशेष ऑफ़र चलाते हैं – जैसे पहली तीन महीने में लोन पर 8% से शुरू होना या वरिष्ठ नागरिकों के लिए फिक्स्ड डिपॉज़िट पर अतिरिक्त 0.5% देना. इन ऑफ़र्स को देख कर आप अपना खर्च और बचत दोनों बेहतर प्लान कर सकते हैं.
अगर आपके पास लोन है, तो ब्याज दर बढ़ने से आपका मासिक भुगतान भी बढ़ेगा. इसका मतलब कम पैसे बचेंगे या आप अतिरिक्त आय का स्रोत ढूँढना पड़ेगा. दूसरी तरफ, यदि आपने फिक्स्ड डिपॉज़िट या सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) में पैसा लगाया है तो दर घटने से आपको कम रिटर्न मिलेगा.
इसे संतुलित रखने का एक तरीका है – लोन के लिए फ्लोटिंग रेट और बचत पर फिक्स्ड रेट दोनों को मिलाकर पोर्टफोलियो बनाना. अगर आप सत्रह‑सत्रह साल तक रहने वाले घर की योजना बना रहे हैं तो लोन को फिक्स्ड टर्म में लॉक कर सकते हैं, ताकि भविष्य की बढ़ती दरों से बचा जा सके.
ब्याज दर का असर सिर्फ बड़े खर्चों पर नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के खर्चों जैसे क्रेडिट कार्ड बिल या इएमआई पर भी पड़ता है. इसलिए जब RBI नई नीति जारी करे, तो तुरंत अपने बैंक स्टेटमेंट चेक कर लें और जरूरत पड़े तो रीफ़ायनेंस की सोचें.
संक्षेप में, ब्याज दर को समझना आसान नहीं, लेकिन इसके मूल सिद्धांतों को जानकर आप बेहतर वित्तीय फैसले ले सकते हैं. हमेशा नवीनतम RBI अपडेट पर नज़र रखें, अपने बैंक के ऑफ़र चेक करें और अपनी जरूरत अनुसार लोन या बचत प्लान चुनें.
फेडरल रिजर्व की सितंबर बैठक का इंतजार पूरी वित्तीय दुनिया कर रही है। निवेशक और अर्थशास्त्री यह जानने को बेताब हैं कि फेडरल रिजर्व की नई नीति क्या होगी। क्या ब्याज दरों में कटौती होगी या नहीं, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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