भारत भर में सोमवार को मनाया जाएगा ईद उल-अधा का त्योहार: दिल्ली में तैयारियों का जोश

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भारत भर में सोमवार को मनाया जाएगा ईद उल-अधा का त्योहार: दिल्ली में तैयारियों का जोश

ईद उल-अधा का उल्लास: भारत के कोने-कोने में उत्सव की तैयारी

भारतभर में ईद उल-अधा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, सोमवार को धूमधाम से मनाई जाएगी। यह मुस्लिम समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार है, जो कुरबानी या बलिदान के तत्व से जुड़ा हुआ है। दिल्ली में इस त्योहार की तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। मस्जिदों को बारीकी से सजाया गया है और विभिन्न बाजारों में रविवार को जबरदस्त भीड़ देखने को मिली। लोगों ने अपने परिवारों के लिए नए कपड़े, खाने-पीने के सामान और अन्य आवश्यक वस्तुएँ खरीदीं।

दिल्ली में विशेष तैयारियाँ

राजधानी दिल्ली में मस्जिदों को रोशनी से सजाने और अन्य आयोजन की तैयारियों पर विशेष ध्यान दिया गया है। जामा मस्जिद और फ़तेहपुरी मस्जिद में ईद की नमाज़ की विशेष व्यवस्था की गई है। सोमवार को सुबह 6:00 बजे जामा मस्जिद में और 7:15 बजे फ़तेहपुरी मस्जिद में नमाज़ अदा की जाएगी। इस अवसर पर हजारों की संख्या में नमाज़ी इन मस्जिदों में जुटेंगे।

बाजारों में रौनक

रविवार की शाम दिल्ली के प्रमुख बाजारों में काफ़ी चहल-पहल रही। लोग अपने परिवार और दोस्तों के लिए खरीददारी में व्यस्त नजर आए। कपड़ों की दुकानों से लेकर मिठाई और सेवईं की दुकानों तक, हर जगह उत्सव का माहौल था। विशेष रूप से मीट बाजारों में भारी भीड़ देखी गई, क्योंकि लोग अपने कुरबानी के लिए जानवरों की खरीददारी करने में लगे रहे। दुआ की गई कि इस बार का त्योहार सभी के लिए सुख और शांति लेकर आए।

सुरक्षा और सफाई व्यवस्था

ईद के इस महत्वपूर्ण पर्व को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा और सफाई व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया है। पुलिस और सुरक्षा बलों को महत्वपूर्ण स्थानों पर तैनात किया गया है ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना न हो सके। इसके साथ ही, सफाई कर्मियों को भी बकरीद के दौरान मांस की भेंट के बाद सफाई का ध्यान रखने के निर्देश दिए गए हैं।

ईद का महत्त्व

ईद उल-अधा का यह पर्व पैगंबर इब्राहीम के अल्लाह के प्रति सर्मपण और विश्वास के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष नमाज़ अदा करने के बाद जानवरों की कुरबानी की जाती है। इस दौरान जो मांस प्राप्त होता है, उसे तीन भागों में बांटा जाता है- एक भाग अपने लिए, दूसरा गरीब और जरूरतमंदों के लिए और तीसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है।

बच्चों का उत्साह

ईद उल-अधा का त्योहार बच्चों के लिए भी विशेष खुशी का अवसर होता है। वे नए कपड़े पहनते हैं, अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर त्योहार का आनंद उठाते हैं और विशेष रूप से मिलने वाले 'ईदी' का इंतजार करते हैं। 'ईदी' वह धनराशि होती है जो बड़े बच्चों को इस विशेष अवसर पर देते हैं। मिठाई, सेवईं और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाना भी इस खुशी को दोगुना कर देता है।

घर-घर में पारंपरिक व्यंजन

ईद उल-अधा के दिन घर-घर में पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। सेवईं, बिरयानी, कबाब और मीठे पकवानों से घर महक उठते हैं। समर्पण के साथ बनाई गई इन व्यंजनों का अलग ही आनंद होता है। परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खाना इस त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

समाज के सभी वर्गों में इस त्योहार की रौनक देखी जा सकती है। भाईचारे और सांझा संस्कृति की मिशाल के तौर पर, यह त्योहार सभी को एक साथ लाने का काम करता है। समर्पण और सोच की गहराई के साथ, यह त्योहार हमें सत्य, न्याय और मानवता की मूल्यों की याद दिलाता है।

जानवरों की खरीददारी

ईद उल-अधा के लिए जानवरों की खरीददारी भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिन घरों में कुरबानी की जाती है, वे बाजारों में जाकर जानवरों की खरीददारी करते हैं। इन बाजारों में भीड़ और उत्साह का माहौल रहता है। जानवरों का चयन बड़ी सोच-समझकर किया जाता है। कुरबानी के जानवरों को ले जाने के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है ताकि उन्हें कोई कष्ट न हो।

खासतौर पर सजावट

मस्जिदों, घरों और बाजारों की सजावट भी इस त्योहार का एक आकर्षण का केंद्र होती है। रंग-बिरंगी रोशनी, फूलों की सजावट और सुंदर पारंपरिक सजावटें इस खास मौकों को और भी खास बना देती हैं। यह सजावट न केवल उल्लास को बढ़ाती है बल्कि समाज में हार्दिकता और खुशियों का माहौल भी बनाती है।

समाज में सामाजिक और धार्मिक तात्पर्य रखने वाला यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि मानवीय मूल्यों को भी उजागर करता है। ईद उल-अधा का त्योहार हमें याद दिलाता है कि सच्ची खुशी और शांति तब मिलती है जब हम अपने समाज की भलाई के लिए कार्य करते हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। समाज में एक दूसरे के प्रति प्रेम, सर्मपण और सहयोग का संदेश फैलाता है यह पर्व।

12 टिप्पणि

Manohar Chakradhar

Manohar Chakradhar

19 जून, 2024 - 16:44 अपराह्न

भाई ये ईद का माहौल तो हर साल ऐसा ही रहता है, लेकिन इस बार तो बाजारों में भीड़ देखकर लगा जैसे पूरा दिल्ली एक जैसे दिल से खुश है। बच्चों की ईदी और माँ की सेवईं का जादू कोई नहीं चुका सकता।
कुरबानी का मतलब सिर्फ मांस नहीं, बल्कि दूसरों को खिलाने की इच्छा होती है।

LOKESH GURUNG

LOKESH GURUNG

19 जून, 2024 - 17:49 अपराह्न

अरे भाई ये सब तो बस दिखावा है! 😅 जब तक गरीबों को नहीं दिया जा रहा, तब तक ये सब रोशनी और फूलों की सजावट बस इंस्टाग्राम के लिए है। जामा मस्जिद में नमाज़ तो लगभग 5000 लोग लगे होंगे, लेकिन उनमें से 4000 तो अपने फोन से फोटो खींच रहे थे। 📸

Aila Bandagi

Aila Bandagi

21 जून, 2024 - 09:28 पूर्वाह्न

मैंने देखा बाजार में एक बुजुर्ग आदमी अपनी बेटी के लिए एक छोटी बकरी खरीद रहे थे। उनकी आँखों में आँसू थे। उन्होंने कहा, 'इसकी एक बार खुशी देखनी है।' ये तो असली ईद है। ❤️

Abhishek gautam

Abhishek gautam

22 जून, 2024 - 23:38 अपराह्न

ये सब धार्मिक नृत्य तो बस एक प्राचीन प्रथा का अवशेष है, जिसे आधुनिकता ने अभी तक नहीं छीन पाई। इब्राहीम की कहानी तो इतिहास की एक अनुमानित घटना है, लेकिन आज लोग उसके आधार पर जानवरों की जान ले रहे हैं। क्या यही सच्चा सर्मपण है? या फिर यह एक भावनात्मक निर्भरता है जिसे हम 'धर्म' कह रहे हैं?
कुरबानी के बाद मांस का वितरण तो एक सामाजिक अनुष्ठान है, लेकिन इसके पीछे एक अंतर्निहित शक्ति संरचना छिपी है - जो अमीर देता है, और गरीब लेता है। यह न्याय नहीं, यह वितरण है।
और हाँ, बच्चों की ईदी भी एक व्यावहारिक रूप से बच्चों को आर्थिक रूप से नियंत्रित करने का तरीका है। जो देता है, वही नियंत्रित करता है।
हम इसे भाईचारा कहते हैं, लेकिन यह तो एक अनौपचारिक दान-प्रणाली है।
अगर आप इसे एक सामाजिक बंधन के रूप में देखें, तो यह बहुत अच्छा है। लेकिन अगर आप इसे एक धार्मिक आवश्यकता के रूप में देखें, तो यह एक अंधविश्वास है।
हम यह नहीं सोचते कि अगर हम इस बलिदान को बंद कर दें, तो क्या होगा? क्या हम अपने मानवीय मूल्यों को खो देंगे? नहीं। हम उन्हें अधिक नैतिक तरीके से व्यक्त कर सकते हैं।
इस तरह के त्योहार आज एक सामाजिक उपाय के रूप में काम करते हैं, लेकिन उनकी मूल शक्ति अब लुप्त हो चुकी है।
हमें अपने धर्म को नए ढंग से परिभाषित करने की जरूरत है - न कि उसके अवशेषों को जीवित रखने की।

Imran khan

Imran khan

23 जून, 2024 - 04:58 पूर्वाह्न

मैंने अपने गाँव में देखा, एक बूढ़ी औरत अपनी बकरी को घर के बाहर ले गई और उसे गले लगाकर कहा, 'तुम मेरी तरह बेबस हो, लेकिन तुम्हारी जान देकर मैं दूसरों को खिला सकती हूँ।'
ये बात सुनकर मेरी आँखें भर आईं। ये ईद नहीं, ये इंसानियत है।

Neelam Dadhwal

Neelam Dadhwal

24 जून, 2024 - 20:21 अपराह्न

ये सब तो बस एक धार्मिक बहाना है जिसके नीचे लोग अपनी लालच को छिपाते हैं। जानवरों की कुरबानी? हाँ, बिल्कुल! लेकिन जब तक एक बूढ़ा आदमी अपनी बकरी को बेचकर अपने बेटे के लिए एक नया फोन खरीद रहा है, तब तक ये बलिदान का नाम बस एक बात है।
और ये सब जामा मस्जिद के आसपास की भीड़? बस एक बड़ा सा बाजार है जहाँ लोग अपने दिखावे के लिए इकट्ठे हो रहे हैं।
कोई नहीं जानता कि वो मांस कहाँ जा रहा है। शायद वो अमीरों के घरों में ही रह गया है।

Sumit singh

Sumit singh

26 जून, 2024 - 15:03 अपराह्न

ये ईद उल-अधा तो बस एक आर्थिक घोटाला है। बाजारों में जानवरों की कीमतें 300% बढ़ जाती हैं। गरीब लोग ऋण लेकर बकरी खरीदते हैं, और फिर उसका आधा हिस्सा अमीरों को दे देते हैं।
और फिर वो बड़े-बड़े बोलते हैं कि 'हमने बलिदान किया'। बलिदान? नहीं भाई, तुमने बस अपना पैसा बर्बाद किया। 😒

fathima muskan

fathima muskan

27 जून, 2024 - 00:31 पूर्वाह्न

क्या आपने कभी सोचा है कि ये बकरी कहाँ से आ रही हैं? 🤔
कल्पना कीजिए - एक राज्य से दूसरे राज्य में जानवरों की आवाजाही, बिना किसी जांच के। क्या ये नहीं है कि ये जानवर बीमार हो सकते हैं? क्या ये नहीं है कि ये सब एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है?
और फिर ये सब लोग बस फोटो खींच रहे हैं, और बोल रहे हैं - 'अल्लाह के नाम पर'।
अल्लाह के नाम पर? ये तो एक व्यापारिक जाल है।

Devi Trias

Devi Trias

27 जून, 2024 - 18:10 अपराह्न

ईद उल-अधा के दौरान जानवरों की कुरबानी के नियम शरीयत के अनुसार बहुत स्पष्ट हैं। जानवर की उम्र, स्वास्थ्य और निर्धारित तरीके से बलिदान करना अनिवार्य है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य समाज में दान और समानता को बढ़ावा देना है।
सुरक्षा और स्वच्छता के लिए सरकारी निर्देशों का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर इन नियमों का पालन नहीं किया जाता है, तो यह धार्मिक अनुष्ठान का विकृत रूप बन जाता है।
हमें इस त्योहार के आध्यात्मिक आधार को याद रखना चाहिए - न कि इसके बाहरी आयोजनों को।

Kiran Meher

Kiran Meher

27 जून, 2024 - 23:32 अपराह्न

ये ईद तो हर साल बस इतनी ही खुशी लेकर आती है - नए कपड़े, ईदी, बिरयानी, और वो बच्चों की हंसी जो तुम्हें भूलने देती है कि कल तुम्हारा बिल कितना है।
अगर तुम्हारे घर में आज एक बकरी है, तो तुम जानते हो कि तुम दुनिया के सबसे अमीर इंसान हो।
ये त्योहार तो बस याद दिलाता है कि खुशी बड़े घरों में नहीं, छोटे दिलों में होती है।
अल्लाह के नाम पर बात करो या न करो, ये दिन तो तुम्हारे लिए खास है।
मैं तो अपनी बहन के लिए सेवईं बनाने वाला हूँ। और ये बात सच है - जब तुम खुश होते हो, तो पूरा आसमान खुश हो जाता है।

Tejas Bhosale

Tejas Bhosale

29 जून, 2024 - 10:43 पूर्वाह्न

ईद उल-अधा का फेनोमेनल अस्तित्व एक सामाजिक कॉन्ट्रैक्ट का रिफ्लेक्शन है - जहाँ धर्म के फ्रेमवर्क में एक रिसोर्स डिस्ट्रीब्यूशन मैकेनिज्म एम्बेडेड है।
कुरबानी का अर्थ बलिदान नहीं, बल्कि एक सामाजिक सिम्बोलिक एक्सचेंज है।
मांस का वितरण एक इन्फोर्स्ड एल्ट्रुइज्म है, जो वर्ग विभाजन को कम करता है।
और हाँ, बच्चों की ईदी? ये एक फिनान्शियल इंस्टीट्यूशन का प्रारंभिक फॉर्म है - जहाँ जनरेशनल ट्रांसफर के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय अपने सामाजिक कैपिटल को रिप्रोड्यूस करता है।
ये त्योहार एक डायनामिक एन्ट्रोपी रिडक्शन टूल है - जो सामाजिक असमानता को एक दिन के लिए नियंत्रित करता है।

Asish Barman

Asish Barman

29 जून, 2024 - 10:44 पूर्वाह्न

ईद उल अधा? बस एक बड़ा जानवर बेचने का दिन है। जिस दिन तुम्हारा बाप बकरी के लिए 15 हजार रुपये देता है और फिर उसका आधा हिस्सा तुम्हारे चाचा को दे देता है।
और फिर तुम्हारी माँ बोलती है - 'ये तो अल्लाह के नाम पर है'।
अल्लाह के नाम पर? ये तो तुम्हारे चाचा के नाम पर है।

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