दक्षिण कोरिया में राजनीतिक संकट तेजी से बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रपति यून सुक यियोल के खिलाफ विपक्षी पार्टी ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव का मुख्य आधार था राष्ट्रपति का विवादास्पद निर्णय, जिसमें उन्होंने मार्शल लॉ लागू करने का प्रयास किया था। इस निर्णय के खिलाफ खासकर विपक्षी दलों में भारी विरोध हुआ। राष्ट्रपति का यह निर्णय अचानक आया, जिसका मकसद विपक्ष को चौंका देना था लेकिन यह कदम उल्टा पड़ गया।
महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए संसद ने बैठक की लेकिन सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने अचानक से बहिष्कार कर दिया। इस बहिष्कार के चलते प्रस्ताव उच्चतम सदस्यों की आवश्यक संख्या नहीं जुटा सका और विफल हो गया। यह सत्तारूढ़ पार्टी की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है ताकि राष्ट्रपति को कोई नुकसान न पहुंचे। विपक्षी दल इसके लिए सत्तारूढ़ दल की आलोचना कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया है।
सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर भी कई नेताओं में इस बात को लेकर मतभेद है। पार्टी के कुछ नेता खुद राष्ट्रपति के खिलाफ हो गए हैं, उनके इस विवादास्पद निर्णय की वजह से। उन्होंने सार्वजनिक रूप से राष्ट्रपति यून के निलंबन की मांग की है। उनकी इस मांग से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी में आंतरिक विभाजन कितनी गहरी हो चुकी है। इस बीच, विपक्ष ने एक नया महाभियोग प्रस्ताव पेश करने की तैयारी भी कर ली है। इसके संकेत मिल रहे हैं कि राजनीति में आने वाले दिनों में हलचल और बढ़ सकती है।
देश की जनता भी इस मुद्दे पर बंटी हुई है। कुछ लोग सरकार के साथ खड़े हैं तो कुछ विरोध दर्ज करा रहे हैं। यह स्थिति सरकार और राष्ट्रपति के लिए चिंता का विषय है। विपक्ष जनता के असंतोष का लाभ उठाकर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। इस राजनीतिक उठापटक ने देश में आम जनजीवन को भी प्रभावित किया है। हर किसी की नजर अब यह देखने पर है कि सत्तारूढ़ दल इस राजनीतिक संकट को कैसे हल करता है और क्या राष्ट्रपति यून सुक यियोल के निर्णय समाज में सुलह करा पाएंगे या नहीं।
राजनीति में गहराते इस संकट की वजह से यह भी सवाल उठने लगे हैं कि राष्ट्रपति का पद कैसे प्रभावित हो सकता है और यह मुद्दा देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए कितना बड़ा खतरा है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि आने वाले समय में यह स्थिति बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल का कारण बन सकती है।