हिमाचल प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय लिया – दो दशकों से बंद रहे राज्य‑चलित लॉटरी को फिर से शुरू किया जाएगा। यह कदम हिमाचल प्रदेश लॉटरी के नाम से ही पहचान बना रहा है, और इसका मुख्य मकसद राज्य की बढ़ती ऋण भार को कम करना है, जिसका आकार अब 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक तक पहुँच चुका है।
वित्त विभाग ने बताया कि लॉटरी से सालाना करीब Rs 50‑100 crore की अतिरिक्त आमदनी की उम्मीद है। यह राशि तब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब सरकार को GST प्रतिपूर्ति का भार कम होना, केंद्रीय निधियों में कटौती तथा हाल के बाढ़‑भूस्खलन से हुए नुकसान की मरम्मत जैसे खर्चों का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी कारणों से राजस्व के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश अनिवार्य बन गई।
संसदीय समिति की रिपोर्ट ने केरल, पंजाब और सिक्किम जैसे राज्य‑स्तर के सफल मॉडल को प्रमुख उदाहरण के रूप में पेश किया। केरल ने लॉटरी से अपने बजट का लगभग Rs 13,582 crore हर साल जोड़ दिया है, जबकि पंजाब ने 2024‑25 में Rs 235 crore और सिक्किम ने Rs 30 crore अर्जित किए। इन आँकड़ों को देखते हुए हिमाचल प्रदेश ने इस आय स्रोत को अपनाने का निर्णय किया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लॉटरी के पुनरायात से न केवल सीधे राजस्व बढ़ेगा, बल्कि इससे जुड़ी मार्केटिंग, वितरण और प्रशासनिक कार्यों से रोजगार के अवसर भी सृजित हो सकते हैं। सरकारी अधिकारी दावा करते हैं कि नई लॉटरी प्रणाली में आधुनिक तकनीकी सुरक्षा, ऑनलाइन टिकटिंग और कड़ी निरीक्षण प्रणाली शामिल होगी, जिससे पिछले जमाने की सामाजिक समस्याएँ – जैसे घर की बिकी, क़ुर्बानी और आत्म‑हत्या – को रोका जा सकेगा।
जबकि सरकार इस कदम को वित्तीय संकट का समाधान मानती है, विपक्ष ने इसे सामाजिक बुराई के रूप में लेबल किया है। भाजपा नेता एवं मौजूदा नेता विरोधी जय राम ठाकुर ने लॉटरी को "अत्यंत रेग्रेसिव और खतरनाक" कहा और कहा कि 1999 में प्रीम् कुमार धूमाल सरकार द्वारा लगाई गई प्रतिबंध का कारण सामाजिक बर्बादी ही था। वे यह भी जोड़ते हैं कि लॉटरी के दुर्व्यवहार से कई परिवार टूट चुके हैं।
लॉटरी पर पहली बार प्रतिबंध 1999 में लगा था, जब तब के मुख्य मंत्री ने लॉटरी (नियमन) अधिनियम, 1998 के सेक्शन 7, 8 और 9 के तहत इसे बंद कर दिया था। उस दौर में कोर्ट ने भी इस पर कई बार हस्तक्षेप किया, खासकर 1996 में सॉलन नगर परिषद के अध्यक्ष ने उच्च न्यायालय में एक सिंगल‑डिजिट लॉटरी व्यवस्था को चुनौती दी थी। इसकी वजह से सामाजिक उथल‑पुथल के कई केस सामने आए।
अब सरकार के पास नया ढांचा है – इस बार मध्यस्थता, डिजिटल सत्यापन और विक्रेताओं के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रिया को कड़ा किया जाएगा। उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि "सही नियमन के साथ लॉटरी राजस्व का स्रोत बन सकता है, जबकि सामाजिक जोखिम को कम किया जा सकता है"।
नई विधायिका की तैयारी भी तेज़ी से चल रही है। वित्त विभाग ने बताया कि इस वर्ष के मानसून सत्र (18 अगस्त से शुरू) में लॉटरी अधिनियम में संशोधन लाने वाला बिल पेश किया जाएगा। इस बिल में शामिल प्रमुख बिंदु हैं:
यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो लॉटरी संचालन शुरू होने में लगभग छह महीने लग सकते हैं – एक परीक्षण अवधि के बाद ही पूरी राज्य में इसे लागू करने की योजना है। इस बीच, कई सामाजिक समूह और नागरिक समाज ने सरकार को मांग कर रखी है कि लॉटरी के लाभ को सीधे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे के प्रोजेक्ट्स में आवंटित किया जाए, ताकि जनता को भी इसका प्रत्यक्ष लाभ दिखे।
राज्य की आर्थिक स्थिति के सुधार में लॉटरी को संभावित मोड़ माना जा रहा है, लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि नई प्रणाली कितनी प्रभावी रहेगी और क्या सामाजिक विवाद को कम कर पायेगी। वित्तीय दबाव और सामाजिक जिम्मेदारी के इस दोधारी तलवार के बीच, हिमाचल प्रदेश की अगली कदम जनता के भरोसे और न्यायिक निगरानी पर निर्भर करेगी।