मैं सुख, इस हफ्ते के बाजार विश्लेषण में आपका स्वागत करता हूँ। पिछले कुछ हफ्तों में शेयर बाजार में ऐसा झटका लगा है कि कई निवेशकों की हिम्मत टूट रही है। Sensex सिर्फ पाँच ट्रेडिंग दिनों में लगभग 1800 पॉइंट गिरा, और Nifty 25000 की दीवार को तोड़ कर नीचे चला गया। यह गिरावट सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि लाखों करोड़ों रुपये की बाजार पूंजी को मिटा रही है।
जैसे ही हम कारणों की बारीकी से जाँच करते हैं, चार बड़े पहलू सामने आते हैं। पहला, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का विशाल निकास। अगस्त‑सितंबर 2025 में उन्होंने लगभग 13‑15 बिलियन डॉलर, यानी 1.1‑1.2 लाख crore रुपये, भारतीय इक्विटीज़ से निकाल लिए। मजबूत डॉलर के साथ विकसित बाजारों में बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद ने भारतीय शेयरों को कम आकर्षक बना दिया।
दूसरा कारण था रुपये का तेज़ अवमूल्यन। डॉलर के सामने रुपये 88 के स्तर को पार कर चुका है, जिससे विदेशियों की निवेश आकर्षण घट गया। साथ ही आयातित महंगाई की सम्भावना भी निवेशकों के मन में डर पैदा कर रही है।
तीसरा मोटा कारक वैश्विक आर्थिक अस्थिरता है। यूएस की मंदी की घबराहट, चीन‑यूएस ट्रेड टेंशन और ऊर्जा कीमतों में उतार‑चढ़ाव ने जोखिम‑सेवर माहौल बना दिया। निवेशक सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर झुके और उभरते बाजारों, जिसमें भारत भी शामिल है, से पैसा बाहर ले गए।
चौथा, घरेलू आर्थिक चुनौतियाँ। महंगाई में निरंतर दबाव, बेरोज़गारी के संकेत, और नीति अनिश्चितता ने RBI की दर कम करने की गुंजाइश घटा दी। ब्याज दरें घटाने की संभावना घटने से कंपनियों के फाइनेंसिंग कॉस्ट में राहत नहीं मिली, जिससे शेयर की कीमतें स्थिर नहीं रह सकीं।
रिपोर्टिंग के अनुसार, इस गिरावट ने अलग‑अलग सेक्टरों पर भी अलग‑अलग असर किया है। वित्तीय सेवाएँ, जो पहले तेज़ क्रेडिट वृद्धि और डिजिटल लेंडिंग से लाभ उठा रही थीं, अब सबसे अधिक दबाव में हैं। IT और बैंकिंग स्टॉक्स ने भी बड़ी गिरावट दर्ज की। एक ही दिन में BSE की बाजार पूंजी कई लाख करोड़ रुपये घट गई। Nifty 50 ने 24,700‑25,100 के तकनीकी समर्थन स्तर को तोड़ते हुए नीचे गिरावट को जारी रखा, जबकि Sensex अनेक बार सैकड़ों पॉइंट्स गिरा।
इन चुनौतियों के जवाब में, RBI ने रुपया को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया। SEBI ने अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए ट्रेडिंग सीमाएँ और मार्जिन नियमों में बदलाव किए। साथ ही, सरकार के पास आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज का विकल्प है, जिससे निवेशक विश्वास को फिर से जगाया जा सके।
मार्च 2025 में एक छोटा, लेकिन आशाजनक उछाल देखा गया था—वैल्यूएशन आकर्षक लग रहा था और कुछ FPI ने फिर से निवेश शुरू किया। Nifty Financial Services Index ने 9% तक की वृद्धि दर दिखाई। फिर भी विश्लेषकों ने चेतावनी दी कि यह पुनरुत्थान अभी तक टिकाऊ नहीं है, क्योंकि बुनियादी मैक्रो‑इकनोमिक खतरें अभी भी बरकरार हैं।
शेयर बाजार की गिरावट का असर कंपनियों की कमाई, बैंकों की स्थिरता और खुदरा निवेशकों पर भी गहरा है। इस कारण उपभोक्ता खर्च में गिरावट का डर है, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है।
आगे की राह अभी स्पष्ट नहीं है। नीति निर्माताओं को मुद्रा स्थिरता, सुदृढ़ वित्तीय नियमन और राजकोषीय समर्थन के बीच संतुलन बनाना होगा, तभी बाजार में फिर से भरोसा बनेगा। निवेशकों को भी अपने पोर्टफोलियो को विविधीकरण और जोखिम प्रबंधन के साथ पुनः देखना चाहिए, ताकि अगले झटके से बचाव हो सके।p>