जब आप सब्ज़ी बाजार में टमाटर की कीमत दो गुना देख कर आश्चर्य जताते हैं, तो वह सीधे‑सीधे मुद्रास्फीति का असर होता है। साधारण शब्दों में कहें तो पैसा कम ताकत वाला हो जाता है और चीज़ों के दाम बढ़ते रहते हैं। हर महीने आपका खर्चा बढ़ता दिखेगा, चाहे आप बचत कर रहे हों या रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी कर रहे हों।
सबसे पहले समझ लें कि दाम क्यों ऊपर जाते हैं। भारत में हालिया डेटा दिखाता है कि खाद्य पदार्थ, ईंधन और स्वास्थ्य देखभाल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। दो बड़े कारण प्रमुख हैं – आपूर्ति‑मांग का असंतुलन और वैश्विक वस्तु मूल्यों में उछाल. अगर फसल में कटाई कम हो या सड़कों पर ट्रांसपोर्ट खर्चा बढ़े, तो किसान को अधिक कीमत मिलती है और वही उपभोक्ता को देना पड़ता है। साथ ही तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतार‑चढ़ाव सीधे भारत के पेट्रोल‑डिज़ल पर असर डालता है, जिससे हर चीज़ महंगी हो जाती है।
एक और कारण है मौद्रिक नीति. जब रिज़र्व बैंक बहुत ज़्यादा पैसे को अर्थव्यवस्था में लाता है तो वह पैसा कम मूल्य वाला बन जाता है. यह अक्सर आर्थिक मंदी से बचने के लिए किया जाता है, पर अगर नियंत्रण नहीं रहा तो मुद्रास्फीति तेज़ हो सकती है.
अब बात करते हैं कि इस महँगी दुनिया में कैसे टिके रहें। सबसे पहला कदम – बजट बनाएं. हर महीने कितना आय और खर्चा होगा, इसे लिखें. अनावश्यक खर्चों को कटौती करें, जैसे रोज़ लॉटरी या बहुत बार बाहर खाना.
दूसरा तरीका है स्मार्ट खरीदारी. बड़े पैमाने पर किराना सामान लेन‑देना अक्सर सस्ता पड़ता है. स्थानीय बाजार में मौसमी फल‑सब्ज़ी लेना भी खर्च घटाता है, क्योंकि ऑफ‑सीजन में कीमतें बहुत बढ़ती हैं.
तीसरा उपाय – निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाएँ. सिर्फ बचत खाते में पैसा रखने से मुद्रास्फीति के साथ उसकी वास्तविक मूल्य घटेगा. सोना, म्यूचुअल फंड या सरकारी बॉन्ड्स में थोड़ा‑बहुत निवेश करने से आप महंगाई को मात दे सकते हैं.
अंत में ऊर्जा बचत न भूलें। बिजली और गैस के बिल कम रखने से कुल खर्चा घटता है. लाइट बंद रखें, एसी की सेटिंग सही रखेँ, और पानी का भी बर्बाद ना करें.
समय‑समय पर सरकारी आँकड़े देखना फायदेमंद रहता है। यदि उपभोक्ता कीमत सूचकांक (CPI) 5% से ऊपर जा रहा हो तो अपने खर्चों को फिर से जांचें. ऐसे कदमों से आप न सिर्फ मौजूदा महंगाई को सहन करेंगे बल्कि भविष्य में भी वित्तीय रूप से सुरक्षित रहेंगे.
मुद्रास्फीति कोई नई चीज़ नहीं, पर उसकी गति तेज़ होती है। समझदारी और थोड़ी योजना के साथ आप इस बदलाव को अपने पक्ष में मोड़ सकते हैं. आगे बढ़ते रहें, जानकारी रखें और बजट का पालन करें – यही सबसे बड़ा बचाव है.
फेडरल रिजर्व की सितंबर बैठक का इंतजार पूरी वित्तीय दुनिया कर रही है। निवेशक और अर्थशास्त्री यह जानने को बेताब हैं कि फेडरल रिजर्व की नई नीति क्या होगी। क्या ब्याज दरों में कटौती होगी या नहीं, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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