हिंडनबर्ग और सेबी विवाद का नया अध्याय
हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा किए गए आरोपों ने भारतीय निवेश क्षेत्र में हलचल मचा दी है। इनमें सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने अडानी समूह के शेयरों में सक्रिय रूप से निवेश किया। हालाँकि, इन आरोपों को IPE-प्लस फंड के ऑपरेटर 360 वन एसेट मैनेजमेंट और बुच परिवार दोनों ने खारिज कर दिया है।
इन आरोपों का संदर्भ
हिंडनबर्ग ने दावा किया है कि 360 वन एसेट मैनेजमेंट के द्वारा संचालित IPE-प्लस फंड ने गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी द्वारा इस्तेमाल किए गए ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी रखी थी। इस फंड के निवेश से संबंधित यह आरोप लगाया गया कि उसने अडानी समूह के शेयरों में भारी मात्रा में व्यापार किया। ऐसा कहा जा रहा है कि यह निवेश 2013 से 2019 के बीच की अवधि में किया गया था।
परंतु, 360 वन एसेट मैनेजमेंट ने स्पष्ट किया है कि IPE-प्लस फंड ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी अडानी समूह के शेयरों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निवेश नहीं किया। फंड ने हमेशा बांड में अपने निवेश को बनाए रखा और अडानी समूह के शेयरों में किसी भी प्रकार का निवेश नहीं किया।
अन्य आरोप और विवरण
IPE-प्लस फंड के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी (CIO), अनिल आहूजा, अडानी एंटरप्राइजेज और अडानी पावर के निदेशक भी रह चुके हैं। लेकिन, इन रिलेशनशिप्स का फंड के निवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अनिल आहूजा और फंड के अन्य सदस्यों द्वारा अडानी समूह के शेयरों में कोई निवेश नहीं किया गया था।
बुच परिवार ने खुद पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि उनके वित्तीय खुलासे हमेशा पारदर्शी रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सेबी को उनके सभी वित्तीय विवरण दिए गए थे और इसमें कोई गड़बड़ नहीं है।
हिंडनबर्ग के आरोपों के जवाब में सेबी और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सेबी के प्रवक्ता ने कहा कि वे इस मामले की गहनता से जांच कर रहे हैं और न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इससे संबंधित कोइ भी जांच CBI को सौंपने या विशेष जांच दल (SIT) बनाने की मांग को खारिज कर दिया। इसके अलावा, अदालती फैसलों में सेबी की कार्रवाई पर विश्वास प्रकट किया गया है।
हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट मेंं अडानी समूह पर कोई नए आरोप नहीं लगाए गए हैं, बल्कि सेबी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए हैं। यह आरोप लगाया गया है कि बुच परिवार और ऑफशोर फंड्स के बीच आपस का संबंध सेबी की जांच को प्रभावित कर सकते हैं।
आगे का रास्ता
इस विवाद के चलते भारतीय वित्तीय बाजार में उथल-पुथल की संभावना है। निवेशक और उद्योग विश्लेषक उत्सुकता से सेबी की आगे की कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सेबी इस मामले की निष्पक्ष जांच कैसे करती है और इससे संबंधित प्रतिबंधात्मक कदम उठाती है।
हिंडनबर्ग और सेबी के बीच के इस विवाद ने भारतीय शेयर बाजार में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। निवेशकों को यह समझने की जरूरत है कि सेबी और सुप्रीम कोर्ट इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं और निष्पक्ष जांच की प्रक्रिया जारी है।
Neelam Dadhwal
13 अगस्त, 2024 - 17:38 अपराह्न
ये सब बकवास है। हिंडनबर्ग कोई जासूस नहीं, बल्कि एक सच्चाई की खोज है। सेबी के ऊपर जो आरोप हैं, वो सिर्फ शुरुआत है। इन लोगों ने भारत के निवेशकों को धोखा दिया है। अब तक कोई नहीं बोला, लेकिन अब तो बात बड़ी हो गई है।
कोई भी बड़ा फंड इतने सालों तक अडानी में निवेश नहीं करता, अगर वो साफ़ नहीं होता। ये सब धोखा है।
vishal kumar
15 अगस्त, 2024 - 13:55 अपराह्न
इस मामले में सामाजिक न्याय और वित्तीय पारदर्शिता के बीच एक गहरा द्वंद्व है। आरोपों की जांच का अर्थ केवल व्यक्तिगत दोषी को ढूंढना नहीं है बल्कि व्यवस्था की विफलता को समझना है। यदि नियामक अपनी निष्पक्षता से संदिग्ध हैं तो बाजार का विश्वास टूट जाता है।
Oviyaa Ilango
17 अगस्त, 2024 - 05:24 पूर्वाह्न
IPE-Plus फंड के निवेश नीति में बांड पर फोकस था ये तो बात है लेकिन जिन लोगों ने इसे चलाया उनके रिश्ते तो देखने लायक हैं। बुच परिवार का नाम आया तो सब बात समझ में आ गई। नियामक का अपना लाभ नहीं देखना चाहिए।
Aditi Dhekle
18 अगस्त, 2024 - 23:10 अपराह्न
ऑफशोर फंड्स की लिक्विडिटी और बेनिफिशियरी ट्रांसपेरेंसी का ये मामला एक क्लासिक केस स्टडी बन गया है। हिंडनबर्ग ने डिस्क्लोजर लेयर्स को एक्सप्लोइट किया है। लेकिन सेबी का रिस्पॉन्स बहुत लेट है। ये फिल्टरिंग ऑफ इन्फॉर्मेशन का एक उदाहरण है।
Aditya Tyagi
19 अगस्त, 2024 - 09:50 पूर्वाह्न
क्या आप लोग ये भूल रहे हो कि अडानी ने भारत को बचाया था? ये हिंडनबर्ग बाहरी शक्तियां हैं जो भारत को कमजोर बनाना चाहती हैं। इन फंड्स का नाम लेकर बहाना बना रहे हो। अपने देश के खिलाफ नहीं बोलो।
pradipa Amanta
20 अगस्त, 2024 - 08:05 पूर्वाह्न
हिंडनबर्ग ने जो कहा वो सच है और सेबी ने जो कहा वो झूठ। जब तक इन लोगों को नहीं डाला जाएगा तब तक ये बात नहीं बंद होगी। अडानी के साथ जुड़े हर इंसान गंदा है।
chandra rizky
22 अगस्त, 2024 - 03:48 पूर्वाह्न
ये सब बहुत जटिल है लेकिन एक बात स्पष्ट है - जांच होनी चाहिए और वो भी पारदर्शी तरीके से। न तो भावनाओं के साथ और न ही राष्ट्रवाद के नाम पर। हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां नियमों का पालन होना चाहिए। 😊
Rohit Roshan
23 अगस्त, 2024 - 19:45 अपराह्न
मुझे लगता है कि इस विवाद में दोनों तरफ से कुछ सच है। हिंडनबर्ग के आंकड़े डिपेंडेबल हैं और सेबी का रिस्पॉन्स भी थोड़ा धीमा है। लेकिन अगर हम इसे एक फिल्म की तरह देखें तो ये एक बड़ा ड्रामा है। 😅 जांच जल्दी हो जाए तो अच्छा होगा।
arun surya teja
25 अगस्त, 2024 - 11:15 पूर्वाह्न
वित्तीय पारदर्शिता के लिए नियामकों की निष्पक्षता अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत रिश्ते नियामक निर्णयों को प्रभावित करते हैं, तो यह व्यवस्था की आधारशिला को कमजोर करता है। इसलिए जांच की आवश्यकता है - न कि राजनीति के लिए, बल्कि न्याय के लिए।
Jyotijeenu Jamdagni
26 अगस्त, 2024 - 21:28 अपराह्न
ये सब एक बड़ा बॉलवुड स्टोरी है। हिंडनबर्ग ने बैंगलोर के कॉफी शॉप में एक डॉक्यूमेंट ढूंढा और अब भारत का बाजार उलट गया। लेकिन अगर आप इसके पीछे के रिश्ते देखें - ओफशोर फंड्स, ब्रोकरेज हाउसेस, और फंड मैनेजर्स के नाम - तो ये एक गंदा गेम है। लेकिन इसमें कोई नया नहीं है। ये तो हमारे बाजार की रूटीन है। 😏
navin srivastava
28 अगस्त, 2024 - 14:23 अपराह्न
हिंडनबर्ग को भारत के खिलाफ अमेरिका ने भेजा है। अडानी ने भारत को दुनिया में लाया है। इन फंड्स के बारे में बात करना बेकार है। सेबी को अपना काम करना चाहिए न कि बाहरी लोगों की बात सुनना। ये सब अंग्रेजों का षड्यंत्र है।