हैदराबाद के सांसद और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में अपने पांचवें कार्यकाल की शपथ लेने के दौरान 'जय फिलिस्तीन' का नारा लगाया, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया। इस नारे के चलते सरकार और विपक्ष के बीच तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। ओवैसी ने अपनी शपथ के दौरान गर्व से तेलंगाना का उल्लेख किया और डॉक्टर बीआर आंबेडकर का संधर्भ देते हुए खुद को तेलंगाना का गर्वित बेटा बताया। इसके बाद ‘जय फिलिस्तीन’ के नारे से वो चर्चा में आ गए।
इस घटनाक्रम के तुरंत बाद, संसदीय कार्य मंत्री किरन रिजिजू ने कहा कि वे इस मामले की जांच करेंगे और आवश्यक नियमों की समीक्षा करेंगे। कई सदस्यों ने भी ओवैसी के इस नारे पर आपत्ति जताई है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने संविधान के अनुच्छेद 102 का हवाला देते हुए कहा कि यह ओवैसी की विदेश राज्य के प्रति निष्ठा दिखाता है और इसके कारण उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।
असदुद्दीन ओवैसी ने महात्मा गांधी के फिलिस्तीन पर दिए बयानों का हवाला देते हुए अपने नारों का बचाव किया। उन्होंने फिलिस्तीनी लोगों को 'दमित' कहते हुए यह भी आरोप लगाया कि उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। ओवैसी के अनुसार, गांधीजी ने भी फिलिस्तीनियों के अधिकारों की हिमायत की थी और यही कारण है कि उन्होंने यह नारा उठाया।
ओवैसी के नारे के साथ ही अन्य सांसदों ने भी शपथ ग्रहण के दौरान विभिन्न नारे लगाए। इनमें 'जय हिंद', 'जय महाराष्ट्र', 'जय भीम' और 'जय शिवाजी' शामिल थे। लेकिन, 'जय फिलिस्तीन' का नारा उठाने पर विवाद गहराता नज़र आ रहा है।
ओवैसी के इस विवादास्पद नारे को लेकर संसदीय नियमों की जांच और विश्लेषण जारी है। यह देखना होगा कि इस मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष में क्या निर्णय होता है। अनुच्छेद 102 के तहत अगर किसी सांसद को विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा दिखाने का दोषी पाया जाता है, तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। इस मामले में, ओवैसी की दलीलें और महात्मा गांधी के बयानों का संदर्भ भी महत्वपूर्ण होगा।
समय ही बताएगा कि असदुद्दीन ओवैसी के राजनीतिक करियर पर इस विवाद का क्या प्रभाव पड़ता है।